Saturday, 24 April 2010

शब्द जो बोलते नहीं पुकारते हैं .


ये कैसी अभिव्यक्ति है तुम्हारी,ये कैसी रचना है
निशब्द हो मौन खड़े क्यूँ ये कैसी विडम्बना है
शब्द ने शब्द ना होकर ये कैसा रूप ले लिया है
सरस्वती को लक्ष्मी बना दिया ये कैसी वंदना है ।

आज जिन पन्नो पर तुमने उम्मीदें लिखी होंगी
कल उन्ही पन्नो पर लम्बी सरहदें खिची होंगी
मैं ये नहीं कहता की मैं एक परिंदा हूं लेकिन
मेरे होंसलो की उड़ान तेरी सोच से ऊँची होगी ।

वो भाव मेरे,जो तुम्हारे मन में पल रहे थे
वो शब्द मेरे,जो तुम्हारे दर्द में ढल रहे थे
तुम मेरे जीवन की एक मूक कविता बन गई हो
वो विचार मेरे,जो तुम्हारे मस्तकपटल में चल रहे थे ।

बेरंग इन पन्नो पर कुछ सिलवटें बाकि हैं अभी
वक़्त जो खीच गया कुछ लकीरें,बाकि हैं अभी
मैं खुद को ही तन्हा ताउम्र देखता रहा लेकिन
तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी ।
अक्षय-मन

51 comments:

प्रिया said...

shabd to bole aur jor shor se bole ...good one!

M VERMA said...

आज जिन पन्नो पर ---
कल उन्हीं पन्नों पर ---
बहुत खूबसूरत रचना, भावपूर्ण

प्रसून दीक्षित 'अंकुर' said...

बेरंग इन पन्नो पर कुछ सिलवटें बाकि हैं अभी
वक़्त जो खीच गया कुछ लकीरें,बाकि हैं अभी
मैं खुद को ही तन्हा ताउम्र देखता रहा लेकिन
तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी ।
**************************************************************************

लाजवाब सर !

संत शर्मा said...

मैं खुद को ही तन्हा ताउम्र देखता रहा लेकिन
तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी ।

Sundar lekhan.

arpit said...

lajwab

अजित वडनेरकर said...

सुंदर....

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सुन्दर.

रश्मि प्रभा... said...

bahut hi badhiyaa

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

वाह...
एक ख़ूबसूरत कशिश....

shama said...

आज जिन पन्नो पर तुमने उम्मीदें लिखी होंगी
कल उन्ही पन्नो पर लम्बी सरहदें खिची होंगी
मैं ये नहीं कहता की मैं एक परिंदा हूं लेकिन
मेरे होंसलो की उड़ान तेरी सोच से ऊँची होगी ।
Hameshaki tarah...gazab ki rachana hai!

kshama said...

Wah ! Kya kamal karte ho!Lekhani pe poora adhipaty hai!

दिगम्बर नासवा said...

MAN KE BHAAV SHABDON KE MAADHYAM SE BAH NIKLE HAIN ...LAJAWAB ...

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut sundar!!

ये कैसी अभिव्यक्ति है तुम्हारी,ये कैसी रचना है
निशब्द हो मौन खड़े क्यूँ ये कैसी विडम्बना है
शब्द ने शब्द ना होकर ये कैसा रूप ले लिया है
सरस्वती को लक्ष्मी बना दिया ये कैसी वंदना है ।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

"tere kitab ka kora pada panna, bharna baki hai abhi.......".....:)

kitni khubsurat baat kari hai tumne akhsay..........tu to my birth kavi hai yaar.........god bless!!

Alpana Verma said...

मैं ये नहीं कहता की मैं एक परिंदा हूं लेकिन
मेरे होंसलो की उड़ान तेरी सोच से ऊँची होगी ।

bahut hi sundar bhaav hain..
yahi Jazba bana rahe to kya baat hai!

Parul kanani said...

chaliye bahut samay baad aapne maun toda to :)..sundar!

रचना दीक्षित said...

आज जिन पन्नो पर तुमने उम्मीदें लिखी होंगी
कल उन्ही पन्नो पर लम्बी सरहदें खिची होंगी
मैं ये नहीं कहता की मैं एक परिंदा हूं लेकिन
मेरे होंसलो की उड़ान तेरी सोच से ऊँची होगी ।
बेरंग इन पन्नो पर कुछ सिलवटें बाकि हैं अभी
वक़्त जो खीच गया कुछ लकीरें,बाकि हैं अभी
मैं खुद को ही तन्हा ताउम्र देखता रहा लेकिन
तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी ।
वाह !!!!!!!!! क्या बात है..... बहुत जबरदस्त अभिव्यक्ति

Dikshya said...

bahot khubsurat rachna hai aap ka
mere dil ki geheraiyon mai utar gaya

Avinash Chandra said...

Bahut jordaar shabd :)

prachi said...

shabd ko badi bekhubi se bhavnao me dhalna aata he tumhe.
बेरंग इन पन्नो पर कुछ सिलवटें बाकि हैं अभी
वक़्त जो खीच गया कुछ लकीरें,बाकि हैं अभी
मैं खुद को ही तन्हा ताउम्र देखता रहा लेकिन
तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी ।
bahot khub chand shabdo me bahot kuch kah jane ki kxamta he tumhari rachna me.
kush raho sada.

Shruti said...

सरस्वती को लक्ष्मी बना दिया ये कैसी वंदना है

very true

-Shruti

डिम्पल मल्होत्रा said...

तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी skaratmk soch..

सु-मन (Suman Kapoor) said...

अक्षय तुम्हारे शब्द तो बस पुकारते ही रहते है। हमेशा की तरह जानदार और अंत तो बहुत ही गजब का है।

ρяєєтii said...

Nice One...
Shabd shab jaise baya kar raha hai puri kahani...!

पूनम श्रीवास्तव said...

akchhaay ji bahut dino se aap blog par dikh nahi rahe the aaj aakhir dhund hi liya hai.shabdon ke jariye man ke bhao ko bahut hi behatareen dhang se prastut kiya hai .lajwaab rachna.
poonam

डॉ० डंडा लखनवी said...

‍आपकी मुक्तक-माला को पढ़ कर आनन्द आया।
सरस्वती और लक्ष्मी में विरोध की बात मैं अपने जिन पूर्ववर्ती रचनाकारों से सुनता आया था कालांतर में वही लक्ष्मीदास बन गए। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए धन भी जरूरी होता है। यह उसका मूल कारण रहा होगा। इसलिए ज्ञानमार्गी को दोनों के बीच संतुलन बना कर चलने को कहा गया है। आपके पहले मुक्तक में आए संशय को मैंने दूर करने का यत्न किया है। आपके मुक्तक का नया रूप यह भी हो सकता है।
-डॉ० डंडा लखनवी
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"ये कैसी अभिव्यक्ति है तुम्हारी,ये कैसी रचना है।
भावसून्य नि:शब्द खड़े क्यूँ इस अतिसे बचना है॥
सरस्वती में लक्ष्मी मैया, लक्ष्मी हंसवाहिनी-
जिधर मचाएं हमको माता उधर हमें मचना है॥"
////////////////////////////////

योगेन्द्र मौदगिल said...

wah.....

Ra said...

अच्छी शुरुआत ..और गज़ब के अंत के साथ शानदार रचना .....

http://athaah.blogspot.com/

RAJWANT RAJ said...

jbrdst abhivykti .bhut achha likha hai .

Shekhar Kumawat said...

bahut khub shandar


aap ka swagat he mere in do blog par

]http://guftgun.blogspot.com/

http://kavyawani.blogspot.com/

sm said...

beautiful poem

ZEAL said...

आज जिन पन्नो पर तुमने उम्मीदें लिखी होंगी
कल उन्ही पन्नो पर लम्बी सरहदें खिची होंगी

Beautiful creation !

s.dawange said...

बहोत ही बेहतरीन वाह ......... । शिरडीवाले साईबाबा आपको और क़ाबलियत दे यही प्रार्थना ,,,,,,,,,,

s.dawange said...

very good

VIVEK VK JAIN said...

'berang in panno pe silwate baki h abhi.......' sir, im speechless, really a very b'ful post.

RADHIKA said...

वाह वाह वाह क्या कहूँ सब मुक्तक स्वयं में पूर्ण हैं ,बहुत ही सुंदर रचनाओ के लिए अभिनन्दन
वीणा साधिका

Dr.Bhawna Kunwar said...

आज जिन पन्नो पर तुमने उम्मीदें लिखी होंगी
कल उन्ही पन्नो पर लम्बी सरहदें खिची होंगी

bhut khubsurt ...jvab nahi..bhut2 bdhai...

VIVEK VK JAIN said...

berang in panno pe.............ek panna bharna baki hai.

awesome.........nice put, every word is on required position. maan gye.

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

बहुत ही अच्छी रचनायें। चौथे मुक्तक में बाक़ी में व्याकरण दोष लग रहा है, बाक़ी में बड़ी ई होती है छोटी इ नहीं।

RAJNISH PARIHAR said...

वाह !!!!!!!!! क्या बात है..... बहुत जबरदस्त रचना .....

VIVEK VK JAIN said...

bahut khoob!

ZEAL said...

वो भाव मेरे,जो तुम्हारे मन में पल रहे थे
वो शब्द मेरे,जो तुम्हारे दर्द में ढल रहे थे
तुम मेरे जीवन की एक मूक कविता बन गई हो
वो विचार मेरे,जो तुम्हारे मस्तकपटल में चल रहे थे

worth reading again .
.।

अरुणेश मिश्र said...

उत्कृष्ट ।

Amrendra Singh said...

अपनी जिंदगी के किताब का कोई पन्ना हमेशा खाली रखना चाहिए, क्योकि जिंदगी को सफर में कोई तो है जो उस पन्ने अपनी इबातत् लिखेगा

mridula pradhan said...

bahot achche.

Dr. Tripat Mehta said...

completely spellbound :)

http://liberalflorence.blogspot.com/

Priyanka Soni said...

बहुत ही मोहक !

ZEAL said...

We must think about others also.

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

भाई जी,
मुक्तकों में छंद-निर्वाह के अपरिहार्य बिन्दु को यदि अपवाद रूप में छोड़ दिया जाए, तो आपके पास वह भावयित्री प्रतिभा है जो किसी व्यक्ति को कवि बनाती है!

विभूति" said...

bhut hi sundar rachna hai super....

Ravi yadav said...

क्या बात है, खूबसुरत रचना