ये कैसी अभिव्यक्ति है तुम्हारी,ये कैसी रचना है
निशब्द हो मौन खड़े क्यूँ ये कैसी विडम्बना है
शब्द ने शब्द ना होकर ये कैसा रूप ले लिया है
सरस्वती को लक्ष्मी बना दिया ये कैसी वंदना है ।
आज जिन पन्नो पर तुमने उम्मीदें लिखी होंगी
कल उन्ही पन्नो पर लम्बी सरहदें खिची होंगी
मैं ये नहीं कहता की मैं एक परिंदा हूं लेकिन
मेरे होंसलो की उड़ान तेरी सोच से ऊँची होगी ।
वो भाव मेरे,जो तुम्हारे मन में पल रहे थे
वो शब्द मेरे,जो तुम्हारे दर्द में ढल रहे थे
तुम मेरे जीवन की एक मूक कविता बन गई हो
वो विचार मेरे,जो तुम्हारे मस्तकपटल में चल रहे थे ।
बेरंग इन पन्नो पर कुछ सिलवटें बाकि हैं अभी
वक़्त जो खीच गया कुछ लकीरें,बाकि हैं अभी
मैं खुद को ही तन्हा ताउम्र देखता रहा लेकिन
तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी ।
अक्षय-मन
निशब्द हो मौन खड़े क्यूँ ये कैसी विडम्बना है
शब्द ने शब्द ना होकर ये कैसा रूप ले लिया है
सरस्वती को लक्ष्मी बना दिया ये कैसी वंदना है ।
आज जिन पन्नो पर तुमने उम्मीदें लिखी होंगी
कल उन्ही पन्नो पर लम्बी सरहदें खिची होंगी
मैं ये नहीं कहता की मैं एक परिंदा हूं लेकिन
मेरे होंसलो की उड़ान तेरी सोच से ऊँची होगी ।
वो भाव मेरे,जो तुम्हारे मन में पल रहे थे
वो शब्द मेरे,जो तुम्हारे दर्द में ढल रहे थे
तुम मेरे जीवन की एक मूक कविता बन गई हो
वो विचार मेरे,जो तुम्हारे मस्तकपटल में चल रहे थे ।
बेरंग इन पन्नो पर कुछ सिलवटें बाकि हैं अभी
वक़्त जो खीच गया कुछ लकीरें,बाकि हैं अभी
मैं खुद को ही तन्हा ताउम्र देखता रहा लेकिन
तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी ।
अक्षय-मन
51 comments:
shabd to bole aur jor shor se bole ...good one!
आज जिन पन्नो पर ---
कल उन्हीं पन्नों पर ---
बहुत खूबसूरत रचना, भावपूर्ण
बेरंग इन पन्नो पर कुछ सिलवटें बाकि हैं अभी
वक़्त जो खीच गया कुछ लकीरें,बाकि हैं अभी
मैं खुद को ही तन्हा ताउम्र देखता रहा लेकिन
तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी ।
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लाजवाब सर !
मैं खुद को ही तन्हा ताउम्र देखता रहा लेकिन
तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी ।
Sundar lekhan.
lajwab
सुंदर....
बहुत सुन्दर.
bahut hi badhiyaa
वाह...
एक ख़ूबसूरत कशिश....
आज जिन पन्नो पर तुमने उम्मीदें लिखी होंगी
कल उन्ही पन्नो पर लम्बी सरहदें खिची होंगी
मैं ये नहीं कहता की मैं एक परिंदा हूं लेकिन
मेरे होंसलो की उड़ान तेरी सोच से ऊँची होगी ।
Hameshaki tarah...gazab ki rachana hai!
Wah ! Kya kamal karte ho!Lekhani pe poora adhipaty hai!
MAN KE BHAAV SHABDON KE MAADHYAM SE BAH NIKLE HAIN ...LAJAWAB ...
bahut sundar!!
ये कैसी अभिव्यक्ति है तुम्हारी,ये कैसी रचना है
निशब्द हो मौन खड़े क्यूँ ये कैसी विडम्बना है
शब्द ने शब्द ना होकर ये कैसा रूप ले लिया है
सरस्वती को लक्ष्मी बना दिया ये कैसी वंदना है ।
"tere kitab ka kora pada panna, bharna baki hai abhi.......".....:)
kitni khubsurat baat kari hai tumne akhsay..........tu to my birth kavi hai yaar.........god bless!!
मैं ये नहीं कहता की मैं एक परिंदा हूं लेकिन
मेरे होंसलो की उड़ान तेरी सोच से ऊँची होगी ।
bahut hi sundar bhaav hain..
yahi Jazba bana rahe to kya baat hai!
chaliye bahut samay baad aapne maun toda to :)..sundar!
आज जिन पन्नो पर तुमने उम्मीदें लिखी होंगी
कल उन्ही पन्नो पर लम्बी सरहदें खिची होंगी
मैं ये नहीं कहता की मैं एक परिंदा हूं लेकिन
मेरे होंसलो की उड़ान तेरी सोच से ऊँची होगी ।
बेरंग इन पन्नो पर कुछ सिलवटें बाकि हैं अभी
वक़्त जो खीच गया कुछ लकीरें,बाकि हैं अभी
मैं खुद को ही तन्हा ताउम्र देखता रहा लेकिन
तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी ।
वाह !!!!!!!!! क्या बात है..... बहुत जबरदस्त अभिव्यक्ति
bahot khubsurat rachna hai aap ka
mere dil ki geheraiyon mai utar gaya
Bahut jordaar shabd :)
shabd ko badi bekhubi se bhavnao me dhalna aata he tumhe.
बेरंग इन पन्नो पर कुछ सिलवटें बाकि हैं अभी
वक़्त जो खीच गया कुछ लकीरें,बाकि हैं अभी
मैं खुद को ही तन्हा ताउम्र देखता रहा लेकिन
तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी ।
bahot khub chand shabdo me bahot kuch kah jane ki kxamta he tumhari rachna me.
kush raho sada.
सरस्वती को लक्ष्मी बना दिया ये कैसी वंदना है
very true
-Shruti
तेरी किताब का कोरा पड़ा एक पन्ना भरना बाकि है अभी skaratmk soch..
अक्षय तुम्हारे शब्द तो बस पुकारते ही रहते है। हमेशा की तरह जानदार और अंत तो बहुत ही गजब का है।
Nice One...
Shabd shab jaise baya kar raha hai puri kahani...!
akchhaay ji bahut dino se aap blog par dikh nahi rahe the aaj aakhir dhund hi liya hai.shabdon ke jariye man ke bhao ko bahut hi behatareen dhang se prastut kiya hai .lajwaab rachna.
poonam
आपकी मुक्तक-माला को पढ़ कर आनन्द आया।
सरस्वती और लक्ष्मी में विरोध की बात मैं अपने जिन पूर्ववर्ती रचनाकारों से सुनता आया था कालांतर में वही लक्ष्मीदास बन गए। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए धन भी जरूरी होता है। यह उसका मूल कारण रहा होगा। इसलिए ज्ञानमार्गी को दोनों के बीच संतुलन बना कर चलने को कहा गया है। आपके पहले मुक्तक में आए संशय को मैंने दूर करने का यत्न किया है। आपके मुक्तक का नया रूप यह भी हो सकता है।
-डॉ० डंडा लखनवी
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"ये कैसी अभिव्यक्ति है तुम्हारी,ये कैसी रचना है।
भावसून्य नि:शब्द खड़े क्यूँ इस अतिसे बचना है॥
सरस्वती में लक्ष्मी मैया, लक्ष्मी हंसवाहिनी-
जिधर मचाएं हमको माता उधर हमें मचना है॥"
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wah.....
अच्छी शुरुआत ..और गज़ब के अंत के साथ शानदार रचना .....
http://athaah.blogspot.com/
jbrdst abhivykti .bhut achha likha hai .
bahut khub shandar
aap ka swagat he mere in do blog par
]http://guftgun.blogspot.com/
http://kavyawani.blogspot.com/
beautiful poem
आज जिन पन्नो पर तुमने उम्मीदें लिखी होंगी
कल उन्ही पन्नो पर लम्बी सरहदें खिची होंगी
Beautiful creation !
बहोत ही बेहतरीन वाह ......... । शिरडीवाले साईबाबा आपको और क़ाबलियत दे यही प्रार्थना ,,,,,,,,,,
very good
'berang in panno pe silwate baki h abhi.......' sir, im speechless, really a very b'ful post.
वाह वाह वाह क्या कहूँ सब मुक्तक स्वयं में पूर्ण हैं ,बहुत ही सुंदर रचनाओ के लिए अभिनन्दन
वीणा साधिका
आज जिन पन्नो पर तुमने उम्मीदें लिखी होंगी
कल उन्ही पन्नो पर लम्बी सरहदें खिची होंगी
bhut khubsurt ...jvab nahi..bhut2 bdhai...
berang in panno pe.............ek panna bharna baki hai.
awesome.........nice put, every word is on required position. maan gye.
बहुत ही अच्छी रचनायें। चौथे मुक्तक में बाक़ी में व्याकरण दोष लग रहा है, बाक़ी में बड़ी ई होती है छोटी इ नहीं।
वाह !!!!!!!!! क्या बात है..... बहुत जबरदस्त रचना .....
bahut khoob!
वो भाव मेरे,जो तुम्हारे मन में पल रहे थे
वो शब्द मेरे,जो तुम्हारे दर्द में ढल रहे थे
तुम मेरे जीवन की एक मूक कविता बन गई हो
वो विचार मेरे,जो तुम्हारे मस्तकपटल में चल रहे थे
worth reading again .
.।
उत्कृष्ट ।
अपनी जिंदगी के किताब का कोई पन्ना हमेशा खाली रखना चाहिए, क्योकि जिंदगी को सफर में कोई तो है जो उस पन्ने अपनी इबातत् लिखेगा
bahot achche.
completely spellbound :)
http://liberalflorence.blogspot.com/
बहुत ही मोहक !
We must think about others also.
भाई जी,
मुक्तकों में छंद-निर्वाह के अपरिहार्य बिन्दु को यदि अपवाद रूप में छोड़ दिया जाए, तो आपके पास वह भावयित्री प्रतिभा है जो किसी व्यक्ति को कवि बनाती है!
bhut hi sundar rachna hai super....
क्या बात है, खूबसुरत रचना
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