Monday, 8 August 2011

कई जिस्म और एक आह!!!


पूछो उन शर्मिंदा दीवारों से
पूछो उन बेगुन्हागारों  से 
जहाँ रोज़ मज़बूरी हो बेआबरू 
जिस्म के उन तलबगारों से 


हर रोज़ झुकती निगाह में 
हर रोज़ बिकती वफ़ा में 
मुझे बस अँधेरा ही दिखता 
हर रोज़ लुटती सुबह में ....


मैं रोज़ यहाँ खिड़की से झाकती हूं 
अपनी आज़ादी की दुआ मांगती हूं 
हालातों ने कुछ इस कदर बाँधा मुझे 
पायलों से जकड़ी बेसुध नाचती हूं



क्या मेरी कबूल कोई दुआ ना होगी 
क्या इतनी ही काफी सजा ना होगी 
मैं बेवफाई कितनी करूँ जिस्म से अपने
क्या रूह भी मेरी कभी खफा ना होगी 

~अक्षय-मन 

हालातों से श्रंगार कर 
दुःख दर्द को होठों मे दबा 
जब एक आह निकलती है 
तो वहीँ बिस्तर पर 
बिखरे बालों की तरह 
बिखर जाते हैं 
मेरे साथ  सभी 
मेरे वो दुःख दर्द भी 
वाबजूद इसके 
फिर से 
नई चादर 
नया ग्राहक 
लेकिन 
वही पुरानी 
एक आह !!!

~अक्षय-मन 




41 comments:

Udan Tashtari said...

ओह!! मार्मिक!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अनुराग जी, आपकी संवेदनाएं मन को छू सी गयीं। बधाई।

------
ब्‍लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!
क्‍या भारतीयों तक पहुँचेगी यह नई चेतना ?

डॉ. मोनिका शर्मा said...

गहन अभिव्यक्ति..... सोचने को विवश करती रचना ....

विभूति" said...

बहुत ही मार्मिक रचना..

Sunil Kumar said...

बहुत खुबसूरत अंदाज में ज़िंदगी की बात की है बधाई

Urmi said...

सच्चाई को आपने बड़े ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है! हर एक शब्द दिल को छू गई! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! इस भावपूर्ण और उम्दा रचना के लिए बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com

Vivek Jain said...

बहुत ही संवेदनशील.
आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Dr.Sushila Gupta said...

aankhon se aansu chalak uthe

man bhi ashant ho, rudan kar raha

nari ki vyatha pe likhane wale

tujhko mera antarman, naman kar raha.

akshyaji
really so nice poem.......thanks.

सागर said...

bhaut hi sarthak bhaavabhivaykti....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत मार्मिक प्रस्तुति

Amit Chandra said...

पहली बार आना हुआ आपके ब्लाग पर। बेहद खुबसुरत रचना है आपकी। मन में छुपे हुए भावों को आपने बेहद खुबसुरती से शब्दों में व्यक्त किया है। आभार।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

uff kahan se late ho itna dard!!

केवल राम said...

हर रोज़ झुकती निगाह में
हर रोज़ बिकती वफ़ा में
मुझे बस अँधेरा ही दिखता
हर रोज़ लुटती सुबह में ....

गहरी और मार्मिक अभिव्यक्ति .....आपका आभार

नीरज गोस्वामी said...

वाह...अनूठे शब्दों से आपने रचना में अपने भावों का समावेश किया है...बहुत सक्षम ढंग से बात कही है...आप साहित्य के क्षेत्र में बहुत कामयाब होंगे इसमें संदेह नहीं...मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.

नीरज

vandana gupta said...

उफ़ अक्षय हर बार की तरह इस बार भी एक कडवी सच्चाई को जिस तरह तुमने उतारा है वो गज़ब है।

संत शर्मा said...

Marmik Prastuti.

सु-मन (Suman Kapoor) said...

Akshay nishab hun...

ज्योति सिंह said...

क्या मेरी कबूल कोई दुआ ना होगी
क्या इतनी ही काफी सजा ना होगी
मैं बेवफाई कितनी करूँ जिस्म से अपने
क्या रूह भी मेरी कभी खफा ना होगी
hridyasparshi rachna ,tumhari is rachna par apni likhi rachna yaad aa gayi -
ukata gaye zindagi teri saja se
ab to is kaid se riha de ,
bas ek chup si lagi hai ......dukh hota hai in haalato par ,badhiya likha hai .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 11 - 08 - 2011 को यहाँ भी है

नयी पुरानी हल चल में आज- समंदर इतना खारा क्यों है -

somali said...

this is the best of all ur poems........sach baut accha likha hai,bahut acche se pida ko vyakt kiya hai congrats

Anju (Anu) Chaudhary said...

सिर्फ और सिर्फ ...आह....मर्मस्पर्शी

Anupama Tripathi said...

गंभीर लेखन ...
मन उदास कर गयी आपकी रचना ....
सोच को जैसे झकझोर गयी ....!!

priyamvada said...

very nice mann really this is awesome

POOJA... said...

tremendous...
is sacchai ko is tarah likh diya... baba re... wakai ek aah uthi kahi beetar, ki uski dua kabool ho jae...

संजय भास्‍कर said...

उम्दा सोच
भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
पहली बार आना हुआ आपके ब्लाग पर। बेहद खुबसुरत रचना है

रश्मि प्रभा... said...

रचनाओं में दर्द की हदों तक पहुँचने और पहुँचाने का सामर्थ्य है .... पढ़ने के बाद , जानने के बाद हम भूल जाते हैं और वह कहती है
'मैं रोज़ यहाँ खिड़की से झाकती हूं
अपनी आज़ादी की दुआ मांगती हूं
हालातों ने कुछ इस कदर बाँधा मुझे
पायलों से जकड़ी बेसुध नाचती हूं '

shama said...

क्या मेरी कबूल कोई दुआ ना होगी
क्या इतनी ही काफी सजा ना होगी
मैं बेवफाई कितनी करूँ जिस्म से अपने
क्या रूह भी मेरी कभी खफा ना होगी
Kamaal ka likhte ho! Mai har baar nishabd ho jatee hun!

monali said...

सब के वश का नहीं होता इतनी शिद्दत से दूसरों के दर्द को महसूस कर पाना और फिर उसे शब्दों में ढाल पाना.... बेहद खूबसूरत अभव्यक्ति...

monali said...

सब के वश का नहीं होता इतनी शिद्दत से दूसरों के दर्द को महसूस कर पाना और फिर उसे शब्दों में ढाल पाना.... बेहद खूबसूरत अभव्यक्ति...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मुक्त छन्दों और रचना की बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

महेन्‍द्र वर्मा said...

दोनों कविताएं मन को भा गईं।
आप एक संवेदनशील रचनाकार हैं।

amrendra "amar" said...

बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

Minakshi Pant said...

नारी मन कि व्यथा को परिभाषित करती खूबसूरत रचना |

Rachana said...

मैं रोज़ यहाँ खिड़की से झाकती हूं
अपनी आज़ादी की दुआ मांगती हूं
हालातों ने कुछ इस कदर बाँधा मुझे
पायलों से जकड़ी बेसुध नाचती हूं
bahut hi samvedanshil man ko bhigoti hui
rachana

दिगम्बर नासवा said...

बहुत मार्मिक ... संवेदनशील रचना है ... दिल में गहरे उतर जाती है ...

Maheshwari kaneri said...

अक्षय तुम मेरे ब्लांग में आये अच्छा लगा..मैनें भी आज पहली बार देखा तुम जैसे नौजवानों के मन में भी नारी के प्रति इतना दर्द भरा है..तुम्हारी भावमयी रचना को सैलूट....

Shalini kaushik said...

क्या मेरी कबूल कोई दुआ ना होगी
क्या इतनी ही काफी सजा ना होगी
मैं बेवफाई कितनी करूँ जिस्म से अपने
क्या रूह भी मेरी कभी खफा ना होगी
बहुत भावपूर्ण likha है अक्षय जी और सच कहूं तो ये ह्रदय की ve bhavnayen हैं jo anayas ही mukhrit ho uthti हैं इन्हें कोई चाह कर भी दबा या प्रगट नहीं कर सकता.बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना.फोल्लो कर रही हूँ kyonki प्रशंसक वर्ग me sammililit hona chahti हूँ.

Kailash Sharma said...

बहुत संवेदनशील और मार्मिक प्रस्तुति...बहुत सुन्दर .

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

shabash honey ,umda likh rahe ho,soch bhi paripakva ho rahi hai/mera sneh,shubhkamnaye,aasheesh
dr.bhoopendra
rewa
mp

Mahesh Barmate "Maahi" said...

bahut khoobsoorat rachna

aabhaar..

mere blog pe aapka swagat hai

mymaahi.blogspot.com

Dr.Bhawna Kunwar said...

gahre utr gayi aapki ye rachan....