Sunday, 14 August 2011

मैं टुकड़ों टुकड़ों में बना हूं


मैं टुकड़ों टुकड़ों में बना हूं
कभी हालातों ने ढाला मुझे
कभी मजबूरियों में पला हूं
मैं टुकड़ों टुकड़ों में बना हूं

बेजान जिस्म में भूख जिन्दा है
एक पकी रोटी की आस में
मैं हर रोज़ जला हूं
मैं टुकडो टुकड़ों में बना हूं

मेरे फटे हाल पर हर रोज़
पेबंद लगा जाता है ये वक़्त
मैं इन चिथड़ों से ढका हूं
मैं टुकडो टुकडो में बना हूं

दर्द की वो किरचें दिखती
होंगी अध्नग्न जिस्म पर
बस वहीँ हैं उन्ही से बना हूं
मैं टुकड़ों टुकड़ों में बना हूं
मैं टुकड़ों टुकड़ों में बना हूं

अक्षय-मन

दुखों की तान पर गरीबी अपना राग सुनाती है
कुछ नहीं तो ऐसे ही पेट की आग बुझाती है !!!
 

हर पल एक नया दर्द  मिलता है उसे बस
उसी दर्द को ही अपना अनुराग बनाती है 

दुखों की तान पर गरीबी अपना राग सुनाती है
कुछ नहीं तो ऐसे ही पेट की आग बुझाती है !!!
 



अक्षय-मन

32 comments:

Sunil Kumar said...

बहुत ही संवेदनशील रचना , दिल को छू लेने वाली , बधाई

रश्मि प्रभा... said...

tukde tukde paiband lagi zindagi hi dard ke mayne samajhti hai...

Amit Chandra said...

shandar.

kshama said...

बेजान जिस्म में भूख जिन्दा है
एक पकी रोटी की आस में
मैं हर रोज़ जला हूं
मैं टुकडो टुकड़ों में बना हूं

मेरे फटे हाल पर हर रोज़
पेबंद लगा जाता है ये वक़्त
मैं इन चिथड़ों से ढका हूं
मैं टुकडो टुकडो में बना हूं
Wah! Kya baat hai!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत संवेदनशील रचना

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें और बधाई

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाईयां

Urmi said...

सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ भावपूर्ण कविता लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

ज्योति सिंह said...

दुखों की तान पर गरीबी अपना राग सुनाती है
कुछ नहीं तो ऐसे ही पेट की आग बुझाती है !!!

हर पल एक नया दर्द मिलता है उसे बस
उसी दर्द को ही अपना अनुराग बनाती है
marmik aur samyik rachna ,aazadi tabhi adhoori lagti hai ,poori rachna sundar .swatantrata divas ki badhai .

अनामिका की सदायें ...... said...

gareebi k tamaam tukdo ko paiband laga ke see liya jaye to bhi ye dard sil nahi sakta.

bahut samvedansheel rachna.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत भावप्रणव रचना!
स्वतन्त्रता दिवस के पावन अवसर पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत भावप्रणव रचना!
स्वतन्त्रता दिवस के पावन अवसर पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ।

सागर said...

tukdo ko shabdo me bhut hi khubsurat se utara hai aapne...

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूबसूरत अंदाज़ में पेश की गई है संवेदनशील रचना
वाह बेहतरीन !!!!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं….!

जय हिंद जय भारत
****************

ana said...

vande mataram......bahut sundar rachana

Dr.Bhawna Kunwar said...

मेरे फटे हाल पर हर रोज़
पेबंद लगा जाता है ये वक़्त
मैं इन चिथड़ों से ढका हूं
मैं टुकडो टुकडो में बना हूं...

bahut khub javab nahi...

जयकृष्ण राय तुषार said...

भाई अक्षय मन जी बधाई और शुभकामनायें |इसी तरह लिखते रहिये |

जयकृष्ण राय तुषार said...

भाई अक्षय मन जी बधाई और शुभकामनायें |इसी तरह लिखते रहिये |

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत सुन्दर रचा है आपने...
राष्ट्र पर्व की सादर बधाइयां...

Amrita Tanmay said...

paiband me jodane ke vaste tukadon ki talaash me hi jandgi gujar jati hai . achchhi lagi. shubhkamna

vidhya said...

बहुत भावप्रणव रचना!
स्वतन्त्रता दिवस के पावन अवसर पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ।

Vandana Ramasingh said...

बेजान जिस्म में भूख जिन्दा है
एक पकी रोटी की आस में
मैं हर रोज़ जला हूं
गज़ब के भाव ....पीड़ा पाठक तक पहुँचती है

amrendra "amar" said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति...आभार.
सादर,

web hosting india said...

Reading this kind of article is worthy .It was easy to understand and well presented.

Sawai Singh Rajpurohit said...

एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ.

शिखा कौशिक said...

man के bhavon की gahan अभिव्यक्ति .शुभकामनायें
blog paheli

Unknown said...

Bahut badhiya aur sanvedan sheel rachna..

मेरे भी ब्लॉग में आयें |

मेरी कविता

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मैं टुकड़ों टुकड़ों में बना हूं

संवेदनशील पंक्तियाँ....... प्रभावित करती रचना

वन्दना अवस्थी दुबे said...

मेरे फटे हाल पर हर रोज़
पेबंद लगा जाता है ये वक़्त
मैं इन चिथड़ों से ढका हूं
मैं टुकडो टुकडो में बना हूं
बहुत सुन्दर कविता है अक्षय जी.

Dr.Sushila Gupta said...

मेरे फटे हाल पर हर रोज़
पेबंद लगा जाता है ये वक़्त
मैं इन चिथड़ों से ढका हूं
मैं टुकडो टुकडो में बना हूं

wahhhhh! akshyaji..aapke lekhan ka andaz hi alag hai , har bar ek alag topic hota hai karun krandan. aapka abhar.

Maheshwari kaneri said...

मैं टुकड़ों टुकड़ों में बना हूं..बहुत ही संवेदनशील और सुन्दर भाव.. मन को छू गई....

Anonymous said...

Akashay ji...

your all work is very unique. in this generation so touching feelings . really your work touched heart core. apki "man" work bahut achhi lagi. though all are different. your most welcome to my blog too..... though i m not so perfact as you but trying...

Anonymous said...

Akashay ji...

your all work is very unique. in this generation so touching feelings . really your work touched heart core. apki "man" work bahut achhi lagi. though all are different. your most welcome to my blog too..... though i m not so perfact as you but trying...