पूछो उन शर्मिंदा दीवारों से
पूछो उन बेगुन्हागारों से
जहाँ रोज़ मज़बूरी हो बेआबरू
जिस्म के उन तलबगारों से
हर रोज़ झुकती निगाह में
हर रोज़ बिकती वफ़ा में
मुझे बस अँधेरा ही दिखता
हर रोज़ लुटती सुबह में ....
मैं रोज़ यहाँ खिड़की से झाकती हूं
अपनी आज़ादी की दुआ मांगती हूं
हालातों ने कुछ इस कदर बाँधा मुझे
पायलों से जकड़ी बेसुध नाचती हूं
क्या मेरी कबूल कोई दुआ ना होगी
क्या इतनी ही काफी सजा ना होगी
मैं बेवफाई कितनी करूँ जिस्म से अपने
क्या रूह भी मेरी कभी खफा ना होगी
~अक्षय-मन
हालातों से श्रंगार कर
दुःख दर्द को होठों मे दबा
जब एक आह निकलती है
तो वहीँ बिस्तर पर
बिखरे बालों की तरह
बिखर जाते हैं
मेरे साथ सभी
मेरे वो दुःख दर्द भी
वाबजूद इसके
फिर से
नई चादर
नया ग्राहक
लेकिन
वही पुरानी
एक आह !!!
~अक्षय-मन
41 comments:
ओह!! मार्मिक!
अनुराग जी, आपकी संवेदनाएं मन को छू सी गयीं। बधाई।
------
ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!
क्या भारतीयों तक पहुँचेगी यह नई चेतना ?
गहन अभिव्यक्ति..... सोचने को विवश करती रचना ....
बहुत ही मार्मिक रचना..
बहुत खुबसूरत अंदाज में ज़िंदगी की बात की है बधाई
सच्चाई को आपने बड़े ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है! हर एक शब्द दिल को छू गई! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! इस भावपूर्ण और उम्दा रचना के लिए बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
बहुत ही संवेदनशील.
आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
aankhon se aansu chalak uthe
man bhi ashant ho, rudan kar raha
nari ki vyatha pe likhane wale
tujhko mera antarman, naman kar raha.
akshyaji
really so nice poem.......thanks.
bhaut hi sarthak bhaavabhivaykti....
बहुत मार्मिक प्रस्तुति
पहली बार आना हुआ आपके ब्लाग पर। बेहद खुबसुरत रचना है आपकी। मन में छुपे हुए भावों को आपने बेहद खुबसुरती से शब्दों में व्यक्त किया है। आभार।
uff kahan se late ho itna dard!!
हर रोज़ झुकती निगाह में
हर रोज़ बिकती वफ़ा में
मुझे बस अँधेरा ही दिखता
हर रोज़ लुटती सुबह में ....
गहरी और मार्मिक अभिव्यक्ति .....आपका आभार
वाह...अनूठे शब्दों से आपने रचना में अपने भावों का समावेश किया है...बहुत सक्षम ढंग से बात कही है...आप साहित्य के क्षेत्र में बहुत कामयाब होंगे इसमें संदेह नहीं...मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
नीरज
उफ़ अक्षय हर बार की तरह इस बार भी एक कडवी सच्चाई को जिस तरह तुमने उतारा है वो गज़ब है।
Marmik Prastuti.
Akshay nishab hun...
क्या मेरी कबूल कोई दुआ ना होगी
क्या इतनी ही काफी सजा ना होगी
मैं बेवफाई कितनी करूँ जिस्म से अपने
क्या रूह भी मेरी कभी खफा ना होगी
hridyasparshi rachna ,tumhari is rachna par apni likhi rachna yaad aa gayi -
ukata gaye zindagi teri saja se
ab to is kaid se riha de ,
bas ek chup si lagi hai ......dukh hota hai in haalato par ,badhiya likha hai .
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 11 - 08 - 2011 को यहाँ भी है
नयी पुरानी हल चल में आज- समंदर इतना खारा क्यों है -
this is the best of all ur poems........sach baut accha likha hai,bahut acche se pida ko vyakt kiya hai congrats
सिर्फ और सिर्फ ...आह....मर्मस्पर्शी
गंभीर लेखन ...
मन उदास कर गयी आपकी रचना ....
सोच को जैसे झकझोर गयी ....!!
very nice mann really this is awesome
tremendous...
is sacchai ko is tarah likh diya... baba re... wakai ek aah uthi kahi beetar, ki uski dua kabool ho jae...
उम्दा सोच
भावमय करते शब्दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
पहली बार आना हुआ आपके ब्लाग पर। बेहद खुबसुरत रचना है
रचनाओं में दर्द की हदों तक पहुँचने और पहुँचाने का सामर्थ्य है .... पढ़ने के बाद , जानने के बाद हम भूल जाते हैं और वह कहती है
'मैं रोज़ यहाँ खिड़की से झाकती हूं
अपनी आज़ादी की दुआ मांगती हूं
हालातों ने कुछ इस कदर बाँधा मुझे
पायलों से जकड़ी बेसुध नाचती हूं '
क्या मेरी कबूल कोई दुआ ना होगी
क्या इतनी ही काफी सजा ना होगी
मैं बेवफाई कितनी करूँ जिस्म से अपने
क्या रूह भी मेरी कभी खफा ना होगी
Kamaal ka likhte ho! Mai har baar nishabd ho jatee hun!
सब के वश का नहीं होता इतनी शिद्दत से दूसरों के दर्द को महसूस कर पाना और फिर उसे शब्दों में ढाल पाना.... बेहद खूबसूरत अभव्यक्ति...
सब के वश का नहीं होता इतनी शिद्दत से दूसरों के दर्द को महसूस कर पाना और फिर उसे शब्दों में ढाल पाना.... बेहद खूबसूरत अभव्यक्ति...
मुक्त छन्दों और रचना की बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
दोनों कविताएं मन को भा गईं।
आप एक संवेदनशील रचनाकार हैं।
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
नारी मन कि व्यथा को परिभाषित करती खूबसूरत रचना |
मैं रोज़ यहाँ खिड़की से झाकती हूं
अपनी आज़ादी की दुआ मांगती हूं
हालातों ने कुछ इस कदर बाँधा मुझे
पायलों से जकड़ी बेसुध नाचती हूं
bahut hi samvedanshil man ko bhigoti hui
rachana
बहुत मार्मिक ... संवेदनशील रचना है ... दिल में गहरे उतर जाती है ...
अक्षय तुम मेरे ब्लांग में आये अच्छा लगा..मैनें भी आज पहली बार देखा तुम जैसे नौजवानों के मन में भी नारी के प्रति इतना दर्द भरा है..तुम्हारी भावमयी रचना को सैलूट....
क्या मेरी कबूल कोई दुआ ना होगी
क्या इतनी ही काफी सजा ना होगी
मैं बेवफाई कितनी करूँ जिस्म से अपने
क्या रूह भी मेरी कभी खफा ना होगी
बहुत भावपूर्ण likha है अक्षय जी और सच कहूं तो ये ह्रदय की ve bhavnayen हैं jo anayas ही mukhrit ho uthti हैं इन्हें कोई चाह कर भी दबा या प्रगट नहीं कर सकता.बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना.फोल्लो कर रही हूँ kyonki प्रशंसक वर्ग me sammililit hona chahti हूँ.
बहुत संवेदनशील और मार्मिक प्रस्तुति...बहुत सुन्दर .
shabash honey ,umda likh rahe ho,soch bhi paripakva ho rahi hai/mera sneh,shubhkamnaye,aasheesh
dr.bhoopendra
rewa
mp
bahut khoobsoorat rachna
aabhaar..
mere blog pe aapka swagat hai
mymaahi.blogspot.com
gahre utr gayi aapki ye rachan....
Post a Comment