Saturday, 7 July 2012

मैं बदलते युग का उत्थान हूं




खुद पर ही करता  मैं अभिमान हूं 
मैं बदलते युग का हाँ उत्थान  . हूं 

सपन्न सभी जो बह चुके हैं नयन-नीर से 
अपने ह्रदय पर वार किये अपने ही तीर से 

पत्थरों में हाँ तराशा हूं खुद को 
बन रहा पत्थर या मैं भगवान् हूं 
खुद पर ही करता  मैं अभिमान हूं 
मैं बदलते युग का हाँ उत्थान  . हूं 

शोलों सी  जल रही हैं  आज सब दिशायें 
दिख रही हैं आज मुझको जिन्दा चितायें 

आएगी हाँ मौत बनकर आंधियां 
खड़ा रहा डटकर हाँ मैं चट्टान हूं 
खुद पर ही करता  मैं अभिमान हूं 
मैं बदलते युग का हाँ उत्थान  . हूं 

भूल चूका हूं सुर वो राग  वो गीत . सभी 
छोड़ चूका हूं प्यार वो साथ वो मीत सभी 

ये जीवन ही  बन जाये जब हाँ रणभूमि 
अंत से अपने लड़ रहा मैं लहू-लुहान हूं 
खुद पर ही करता  मैं अभिमान हूं 
मैं बदलते युग का हाँ उत्थान  . हूं 

देखो फेला हूं मैं सब संसार में
कहने को पर नहीं पर उड़ान हूं 

बादलों से गिर रही हैं जो बिजलियाँ 
छिप के रहना मुझसे में आसमान हूं 
खुद पर ही करता  मैं अभिमान हूं 
मैं बदलते युग का हाँ उत्थान  . हूं 

~~अक्षय-मन 
 © copyright 

20 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

ये हौसला कभी टूटे न.....
बिना परों के भी ऊचाईयां छूने का जज्बा कायम रहे,,,

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति अक्षय जी.
अनु

Anju (Anu) Chaudhary said...

अपने मन के विश्वास को यूँ ही कायम रखे .....सादर

अजय कुमार झा said...

रविवारीय महाबुलेटिन में 101 पोस्ट लिंक्स को सहेज़ कर यात्रा पर निकल चुकी है , एक ये पोस्ट आपकी भी है , मकसद सिर्फ़ इतना है कि पाठकों तक आपकी पोस्टों का सूत्र पहुंचाया जाए ,आप देख सकते हैं कि हमारा प्रयास कैसा रहा , और हां अन्य मित्रों की पोस्टों का लिंक्स भी प्रतीक्षा में है आपकी , टिप्पणी को क्लिक करके आप बुलेटिन पर पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और शुभकामनाएं

मुकेश कुमार सिन्हा said...

bahut behtareeen:)

निर्झर'नीर said...

पत्थरों में हाँ तराशा हूं खुद को
बन रहा पत्थर या मैं भगवान् हूं

Exceelent creation

एहसास said...

sunhare samay ka khubsurat utthhan.....

haan tujh par har shabd ko abhi maaan he...

sm said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

somali said...

bahut accha jajba hai...bhavpurna rachna...sundar abhivyakti

शिवनाथ कुमार said...

बादलों से गिर रही हैं जो बिजलियाँ
छिप के रहना मुझसे में आसमान हूं
खुद पर ही करता मैं अभिमान हूं
मैं बदलते युग का हाँ उत्थान . हूं

सुंदर ....
बस ऐसे ही आत्मविश्वास बनाए रखिये ...

शिवनाथ कुमार said...

बादलों से गिर रही हैं जो बिजलियाँ
छिप के रहना मुझसे में आसमान हूं
खुद पर ही करता मैं अभिमान हूं
मैं बदलते युग का हाँ उत्थान . हूं

सुंदर ....
बस ऐसे ही आत्मविश्वास बनाए रखिये ...

aditimishra222@gmail.com said...

bahut khoobsoorat rachnaa -aise hi likhte rahiye
- shubh-kamnaye

Aditi Poonam said...

sunder bhav-atisunder kavita

Bodhmita said...

badalte yug ka abhiman... bahut hi sundar chitran hai akshay ji.

शारदा अरोरा said...

bahut badhiya...

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत ही भावपूर्ण रचना | आभार

tamasha-e-zindagi
Tamashaezindagi FB Page

mridula pradhan said...

badi achchi lagi.....

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत सुन्दर

Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

कविता रावत said...

बादलों से गिर रही हैं जो बिजलियाँ
छिप के रहना मुझसे में आसमान हूं
खुद पर ही करता मैं अभिमान हूं
मैं बदलते युग का हाँ उत्थान . हूं

..बहुत सुन्दर ..

Blogvarta said...

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मीनाक्षी said...

जाने कैसे यहाँ पहुँच गई.. इतना ऊँचा जज़्बा मुबारक हो...इस ब्लॉग़ पर आकर ऐसा लगा जैसे अंतरिक्ष में अनगिनत सतरंगी चाहतें तैर रही हूँ....ढेरों शुभकामनाएँ...