1.
मुझे नहीं पता मुझे क्या कहना है
मुझे ये भी नहीं पता आप क्या सुनना
चाहते हैं
ना आपके सवाल पता है और ना ही मुझे
मेरे जवाब
फिर भी आपसे रू -बा -रू हूँ
एक बार फिर न जाने क्यूँ न जाने किसलिए
2.
अब वो सारा प्यार आंसुओं में बह गया
जिस प्यार मे तुम कभी डूबे थे
वो लहर अब उठती नहीं जो हमारे प्यार
पर परवान चढ़ती थी ...
वो किनारे अब मिलते नहीं जिनकी दूरियाँ
हम बाँट लेते थे, वो सागर अब नहीं उफनता
झील की ख़ामोशी को देखकर
आज वक़्त की आंधी ने
हर लहर को हमारे खिलाफ कर दिया
और अब दफ़न है ज़िन्दगी का हर वो लम्हा
समुन्दर की उस रेत में जहाँ हमने
कुछ सपने लिखे थे और कुछ घरोंदे बनाये थे
3.
उस खामोश दरख़्त पर
शोर मचाता वो पत्ता
हर रोज़ पूछता है मुझसे
तुम क्यूँ चुप हो
क्यूँ पतझड़ तुम पर आया है
क्यूँ ये इतनी तन्हाई है
क्यूँ खिलते नहीं तुम फूलों से
क्या किसी "बहार " से रुसवाई है
4.
मैं जानता हूँ उस एहसास को, उस स्पर्श को,
उस बंधन, उस समर्पण को
और हर उस लम्हे को जो तुझे
पाने से शुरू होता है और
तुझे खोने पर ख़त्म
लेकिन तबसे अब तक मुझे नहीं पता
मैंने हर लम्हे में तुझे कितनी बार पाया है
और न जाने कितनी बार खोया ......
अक्षय-मन
24 comments:
main janta hoon, us ahsaas ko , us sparsh ko..:)
wah akshay...bahut pyare shabd..!!
bhai tum to purane mane hue rachnakaar ho..!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
very nice post
कविताए दिल को छूती है
सुन्दर अभिव्यक्ति।
एक अकेलापन,सूनापन पसरा हुआ है सभी कवितायों में..
सुंदर भाव .....प्रभावी अभिव्यक्ति....
Very beautiful... aapka profile me 'about me' me likha har shabd kisi ajeeb si urjaa se ot-prot laga... keep writing :)
very nice
4th one is really very beautiful.. :)
तीसरी और चौथी अच्छी लगी ....
कुछ अच्छी क्षणिकाएं हों तो भेजिएगा ...
'सरस्वाती- sumaan' patrikaa के liye यहाँ ...
harkiratheer@yahoo.in
ati sunder
आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
khoob likha hai .sunder bhav
rachana
आप की कविता के भावो के उपरांत कुछ उपजे भाव
इंसान थे हम,
देवता बना वो पूजते रहे
बेखबर इस बात से
पत्थरों की भी उम्र होती है
टूट के बिखर जाने पर
पूजने वाले पहचानते नहीं
अच्छी लगी आपकी ये क्षन्दिकायें ......चौथी बहुत अच्छी लगी...:):)
बहुत अच्छा लिखा है आपने आपकी कविताओं में काफी गहराई छिपी है...
वाकई अनसुलझी
Bahut khubsurat rachna...
अब वो सारा प्यार आंसुओं में बह गया
जिस प्यार मे तुम कभी डूबे थे
वो लहर अब उठती नहीं जो हमारे प्यार
पर परवान चढ़ती थी ...
वो किनारे अब मिलते नहीं जिनकी दूरियाँ
हम बाँट लेते थे, वो सागर अब नहीं उफनता
झील की ख़ामोशी को देखकर
आज वक़्त की आंधी ने
हर लहर को हमारे खिलाफ कर दिया
और अब दफ़न है ज़िन्दगी का हर वो लम्हा
समुन्दर की उस रेत में जहाँ हमने
कुछ सपने लिखे थे और कुछ घरोंदे बनाये थे
प्रेम वास्तव में एक अनसुलझी पहेली है ....बेहतरीन रचना
pyar ka ahsas use khone ke bad hee shiddat se hota hai. sunder bhwuk prastuti.
वाह....
vah
Badi pyari rachna hai... Aapki rachnaon se baahar nikalne ko ji nahin kar raha tha..
wah akshyaji
doob jane ka man karta hai aapki kavitaon me.
मैं जानता हूँ उस एहसास को, उस स्पर्श को,
उस बंधन, उस समर्पण को
और हर उस लम्हे को जो तुझे
पाने से शुरू होता है और
तुझे खोने पर ख़त्म
लेकिन तबसे अब तक मुझे नहीं पता
मैंने हर लम्हे में तुझे कितनी बार पाया है
और न जाने कितनी बार खोया ......
choo gaee ye lines antarman ko..thanks.
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