Thursday, 28 July 2011

कुछ अक्षय सा पार्ट 1....




1.
दर्द को जीने दो अभी 
कितना जियेगा आखिर
जब तुम वापस आ जाओगे 
ये भी चला जायेगा 
लेकिन 
मुझे मालूम नहीं अभी 
इस दर्द की क्या उम्र तय की है तुमने ...

2.
सोचता रहता हूं 
वो शब्द 
जो तुम्हारे दर्द 
में ढल जाये 
आखिर तुम भी तो
कभी ये समझोगी 
की मैं भी 
तुम्हे समझता हूं....

3.
शाम होते होते तुम
बिखर सी जाती हो 
और जब मैं तुमको इन शब्दों मे समेटता हूं 
तो तुम्हारा एक 
अलग ही रूप निकल कर सामने आता है
बस उसी नए रूप को 
मैं रात रात भर निहारता रहता हूं
कि तुम इन शब्दों मे सिमट कर 
हर बार 
मेरी एक मूक कविता बन जाती हो
ये सिलसिला रोज़ चलता है 
हर बार तुम बिखरती हो और 
ऐसे ही हर बार मैं समेट लेता हूं 
तुम्हे अपने शब्दों मे ...

4.
कुछ लम्हे टूटे फूटे 
कुछ यादें धूमिल सी 
सहमी सी कुछ खुशियाँ 
कुछ रातें बदनाम पड़ी 
बेचैन से कुछ सपने
वफ़ा भी बेआबरू थी
लूट चूका था वो घर 
दीवारें शर्मिंदा खड़ी थी

तभी दरवाजे से 
एक आवाज़ आती है 
बेशक्ल वो ग़मगीन 
आवाज़ 
मुझसे पूछ रही थी 

"इस वीराने में क्या 
ग़म के लिए भी कोई आसरा है" ?



5.
राधा कहूं या मीरा,एक ही परिभाषा है 
प्रेम कहूं या पीड़ा,एक ही परिभाषा है 
ये समर्पण मैं कैसे परिभाषित करूँ ?? 
द्रोपदी कहूं या सीता,एक ही परिभाषा है... 

6.
तुम जीवन की कभी आस बन जाती हो 
तुम मिर्त्यु का कभी आभास बन जाती हो 
तुम समय के जैसे अस्थिर क्यूँ हो प्रिय 
हर पल में एक नया इतिहास बन जाती हो 

7.
एक केनवास पर मैंने आईना बनाया 
उस आईने मैं तुम देख रही थी

अचानक 
वो केनवास छुट गया हाथों से

वो आईना टूट गया 

और तुम बिखर गई फर्श पर 

एक टूटे ख्वाब की तरहां.....

8.
इस रात की अँधेरी में वो खुद को निहार रहे हैं 
आईने से कहदो उन्हें देखे ज़रा नजाकत से ...

9.
बेशक्ल उस अक्स की मैं परवाह क्यूँ करूँ ?
जो कभी मेरे आगे तो कभी मेरे पीछे होता है


10.
जमीं की प्यास को बुझाये कैसे
आसमान को हम समझाएं कैसे 
बरसेगा तुमपर अभी कल परसों 
रोज रोज ये कहकर बहलायें कैसे 

11.
घिली मिटटी हूं जैसा चाहोगे ढल जाउगी
बस दुआ करो तुमसी पत्थर ना बनू 

12.
जब जब तुम्हारी 
याद आती है 
खुद से नफरत करने
लगता हूं मैं 
फिर 
सोचता हूं 
ये नफरत मैं खुद से कर रहा हूं 
या फिर तुमसे

15.
मेरे खतों का तुम मेरे बाद क्या करोगे
मेरे साथ ही क्या उनको भी जला दोगे 
तुम करोगे याद बहुत पढ़कर उन्हें सुनो 
मेरे संग क्या राख खतों की भी बहा दोगे ?


14.


बदलते क्यूँ हैं हम

घडी की सुइयां 
बदलती है 
पल बदलते हैं 
हर लम्हा यहाँ 
वक़्त बदलते हैं 

बदलते क्यूँ हैं हम

उम्र बदलती हैं 
रूप-आकार
बदलते हैं
हर मोड़ 
पे यहाँ 
लोग बदलते हैं 

बदलते क्यूँ हैं हम

सोच बदलती है 
शब्द बदलते हैं 
हर बात पर यहाँ 
वो बात बदलते हैं

बदलते क्यूँ हैं हम 

रात बदलती है 
दिन बदलते हैं 
हर हादसे पर 
यहाँ कानून 
बदलते हैं 

बदलते क्यूँ हैं हम

मोहब्बत बदलती है 
जज़्बात बदलते हैं 
ग़म तो ग़म ही रहता 
बस हालात बदलते हैं 

नजरें बदलती हैं 
नज़ारे बदलते हैं 
हर रोज़ आसमा 
मे सितारे बदलते हैं 

बदलते क्यूँ हैं हम

आस्था बदलती है 
धर्म बदलते हैं 
हर रोज़ हम यहाँ 
भगवान् बदलते हैं 

बदलते क्यूँ हैं हम 
हम क्यूँ बदलते हैं 
ये बदलाव भी यहाँ 
हर रोज़ बदलते हैं 

बदलते क्यूँ हैं हम 
बदलते क्यूँ हैं हम !!!


अक्षय-मन


13 comments:

रश्मि प्रभा... said...

bahut hi badhiyaa... lock hata dijiye

!!अक्षय-मन!! said...

dhanyawaad par kaunsa lock main samjh nahi paya..sry...

Udan Tashtari said...

कॉपी पेस्ट वाला लॉक....


कवितायें बहुत बढ़िया हैं...

!!अक्षय-मन!! said...

आँखों ही आँखों में
एक ही पल में सब
कुछ लेकर
कुछ दे गए थे तुम

वो यादें
अब भी बरक़रार हैं
कभी नासूर बनकर
तो कभी कसक बनकर
बहुत रुलाती हैं मुझे,,.....
ना जाने तुम कब आओगे...
मेरे इस दर्द से मिलने ....
मेरा ये जख्म भरने?????अक्षय-मन

सागर said...

बहुत ही खूबसूरती से आपने शब्दों में दिल के एहसासों को समेटा है.....

Urmi said...

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

Arvind kumar said...

सारी रचनाएँ एक से बढकर एक है....
बहुत ही खूसूरत...

मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है...

Narendra Vyas said...

सभी क्षणिकाएँ बहुत ख़ूबसूरत हैं, खास कर पहली, दूसरी और तीसरी रचना ने बहुत प्रभावित किया.. शुभकामनाएँ ! सादर !!

विभूति" said...

बहुत ही सुंदर रचना रच दी आपने शब्दों को जोड़ कर...

हरीश प्रकाश गुप्त said...

क्षणिकाएं संवेदना जगाती हैं।

kshama said...

,कुछ परिवर्तन,कुछ टूटे स्वप्न
और जहाँ हर कदम पर
जीवन उसका एक
कसौटी
पर उतरता है

वहां एक परिणीता का
जन्म होता है

जहाँ हर रिश्ता एकरूप होकर सिमटता है
वहां-वहां एक परिणीता का जन्म होता है
Sach me aisahee hota hai.....

vijay kumar sappatti said...

बहुत खूब बच्चे ...
जरुर आगे जाओंगे ....

इतनी सारी नज्मो ने मन मोह लिया है , एक से बढ़कर एक .. और सच कहूँ तो मुझे बहुत सी maturity भी दिख रही है इन नज्मो में .. मुझे बहुत पसंद आई , कुछ नज्मे तो बस दिल में उतरी हुई है ..

दिल खुश कर दिया बेटा ..

विजय

ज्योति सिंह said...

सोचता रहता हूं
वो शब्द
जो तुम्हारे दर्द
में ढल जाये
आखिर तुम भी तो
कभी ये समझोगी
की मैं भी
तुम्हे समझता हूं....
waah baat dil ko chhoo gayi ,tumhe padhna sukhad ahsaas hai .shayad maun behtar hai yahan .kuchh shabd ke alawa .