Wednesday, 17 December 2008

अनाथ


भूख फिर जागी है उन अंधेरों में
एक रोता अलाप लिए वो तुमसे
कहना चाहती है मुझे उस आँचल
का एहसास करा दो जो कभी मुझपर
नही गिरा मुझे ये बतादो की मैं कौन हूं?
आज मैं ख़ुद को ढूढ़ रहा हूं कभी किसी माँ
के आँचल में कभी इन चलती राहों में तो कभी मुझे
मिली फटकार से तो कभी मुझे मिली गालियों से....
मैं ख़ुद को एक अनजानी सी पहचान देता हूं ....
बचपन से अब तक ख़ुद को ही तो देखता आया हूं
कभी किसी ने मुझे नही देखा मैं कोई ग्रहण तो नही
जो मुझे देखने से भी तुम अंधे हो जाओगे ....
मैं कोई आग तो नही जो मुझे छुने से तुम जल जाओगे
मुझे मालूम है तुममे से ही कोई एक है मेरा बाप,मेरी मां
लेकिन अब तो वो भी नही पहचानेगे
क्यूंकि इस अश्लीलता के बाज़ार में मुझे लोग अनाथ बुलाते हैं.....

36 comments:

vandana gupta said...

ek anath ke dard ko aapne bakhubi samjha hai..........bahut hi achcha likha hai

रश्मि प्रभा... said...

aise mann ki vyatha ko sashakt dhang se ubhaara hai,
ek-ek shabd mann ko bhaari banate gaye aur main maa
ban gai,apne aanchal me is dard ko samet liya aur
haath aashish me uthe aur dil ne kaha.....kaun anaath
kahega,main hun n

परमजीत सिहँ बाली said...

एक अनाथ के भीतर उठती भावनाओं को बहुत बढिया प्रस्तुति की है।

Palak.p said...

ye kavita kahi na kahi muje chhuti hai. yaha kehnay ko is waqt koi shabd nahi mere pass kyu ki ise padh kar mai awak reh gai hu . ha ye dard mai jarur mehsus karti hu shayd is liye muje ye kavita jyada chhu gai.

gyaneshwaari singh said...

कभी किसी ने मुझे नही देखा मैं कोई ग्रहण तो नही
जो मुझे देखने से भी तुम अंधे हो जाओगे ....
मैं कोई आग तो नही जो मुझे छुने से तुम जल जाओगे

maun kar diya in lines ne inke ahsas ne

bahut dard dikha

दिगम्बर नासवा said...

अनाथ मन की भावनाओं को अच्छी तरह से उताराहाई आपने
ह्रदय को छू लेने वाले बोल

तीसरा कदम said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग को पढ़ा.
बहुत ही खूब लिखा. क्या कहूं..................
जबरदस्त.

धीरेन्द्र पाण्डेय said...

aapne anath man ki uljhan ko apni lakhni ke madhyam se kaphi khubsurti se ukara hai..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

ek sashakt prastuti, mujhe cman@In.com par mail karen plz

vijay kumar sappatti said...

bahut sundar akshay ,

anaath ke man vyatha ko bakhubi darhsaya hai , isse pata chalta hia ki tumhare komal man mein kitni gahri bhavnaaye hai ..

main tumhari lekhni ka loha maan gaya yaar.

badhai

vijay

pls visit my blog of poems : http://poemsofvijay.blogspot.com/

अनुपम अग्रवाल said...

anaath kee vyathaa ko shabdon mein baandh diyaa aapne.

"अर्श" said...

बहोत खूब लिखा है आपने .....

seema gupta said...

क्यूंकि इस अश्लीलता के बाज़ार में मुझे लोग अनाथ बुलाते हैं.....
" आज ही पढ़ी ये रचना और दिल को बहुत भावुक कर गये ये शब्द ....."

regards

Smart Indian said...

कभी किसी ने मुझे नही देखा मैं कोई ग्रहण तो नही
जो मुझे देखने से भी तुम अंधे हो जाओगे ....
दिल को छू लेने वाले शब्द!

अनन्य said...

नववर्ष २००९ की मंगल कामनाओं सहित बहुत बहुत बधाई !

sandhyagupta said...

Achchi rachna.

पूनम श्रीवास्तव said...

Akshaya ji,
Bahut hee marmik kavita likhi hai apne.Bahut kam shabdon men..kafee kuchh kah gaye ap.Badhai.
apko naye varsh kee bhee hardik badhai.

KK Yadav said...

भूख फिर जागी है उन अंधेरों में
एक रोता अलाप लिए वो तुमसे
कहना चाहती है मुझे उस आँचल
का एहसास करा दो जो कभी मुझपर
...बहुत सुन्दर. दिल को छूने वाली पंक्तियां !!

Vinay said...

मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ
मेरे तकनीकि ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं

-----नयी प्रविष्टि
आपके ब्लॉग का अपना SMS चैनल बनायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

निर्मला कपिला said...

bahut badia abhivykti hai

Manuj Mehta said...

वाह बहुत खूब. आपके ब्लॉग पर आने पर हर बार एक नया अनुभव होता है. आपकी लेखनी यूँ ही जादू बिखेरती रहे.

Bhavesh (भावेश ) said...

एक सराहनीय प्रयास, काफ़ी मार्मिक चित्रण किया है आपने. वैसे आपका बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मेरे ब्लॉग के प्रथम प्रयास को सराहा. अभी लिखने को बहुत कुछ है बस थोड़ा समय मिलते ही पहले ब्लॉग से अभिक्ष होना चाहूँगा और उसके पश्च्यात कोशिश करूँगा की नियमित तौर पर थोड़ा वक्त ब्लॉग को दे सकू. एक बार फिर आपका हौसला अफजाही के लिए शुक्रिया.

Manuj Mehta said...

आज मैं ख़ुद को ढूढ़ रहा हूं कभी किसी माँ
के आँचल में कभी इन चलती राहों में तो कभी मुझे
मिली फटकार से तो कभी मुझे मिली गालियों से....

bahut khoob janab, wah bahut badhiya.

Ek Shehr Hai said...

बहुत बड़िया है।
शब्दों के खेल मे जीवन घूमता है। लगता है जैसे कहीं जाकर, वापस लौट रहा है।

एक बार मेरे एक साथी ने मुझसे कहा और पूछा था वो मैं आपको कहता हूँ।

"यही जीवन है।"
"क्या यही जीवन है?"

इन दो लाइनों मे संमदर छुपा है। जिसको समझने मे मुझे वो सब छोड़ना पड़ा जिसके जरिये मैं आसपास और समाज को देखता था। बहुत सारी अपनी ही धारणओ को खोखला करके जीना भी कभी-कभी हमें नई राहें दिखाता है।

सोचने को मिला

Urmi said...

दिल को छू लेने वाली रचना है! बहुत बढ़िया!

dinesh said...

We have no words for you. Really its very heart touching.

Varun said...

composition has forced me to think over the pains of such innocent kids...

very impressive, akshay...

shyam gupta said...

रचना तो बहुत बडिया है.. बधाई..पर यदि यह चित्र सूर्य ग्रहण का है तो गलत है, क्या सूर्य की अन्दर की परछाई में बादल आ सकते हैं?

स्वप्न मञ्जूषा said...

कभी किसी ने मुझे नही देखा मैं कोई ग्रहण तो नही
जो मुझे देखने से भी तुम अंधे हो जाओगे ....

bahut sundar..
accha lagaa..

रंजू भाटिया said...

भावुक कर देने वाली रचना

Imran Sayyad said...

बहुत ही खुब !!

Imran Sayyad said...

बहुत ही खुब !!

Imran Sayyad said...

बहुत ही खुब !!

Avinashmalhotraavi@gmail.com said...

kavita ko padh kar mujhe laga mere bheetar ki maa ne awaz suni hai, mamta pukar rahi hai aur maine kaha- main yahan hoon, tum anaath kaise ho sakte ho, main hoon na.

Anonymous said...

बहुत बड़िया है।

Dr.Sushila Gupta said...

tareef me dictionary ke words kam pad jaaenge,

so nice........thanks.