बन आहुति श्रंगार करूं अपने हाथों अपनी अर्थी
हालातों की चिता है और अग्नि बन जाये मज़बूरी
आखरी समय है मेरा या है आखरी ये जुल्म तेरा
दोनों में से कुछ तो हो जीवित हूं पर हूं मरी-मरी
२
मान रखूं मैं उनका भी जिनसे हुई अपमानित मैं
जीत कर भी हारूं पल-पल तुमसे हुई पराजित मैं
किसकी थी किसकी हुई रिश्तों में आज बांटी गई
कौन है मेरा मैं किसकी टुकडो में हुई विभाजित मैं !!
३
मेरी व्यथा भी सुनलो आज खामोश खड़ी हूं कब से मैं
मन में सोचूं दिल में छुपा लूं खामोश खड़ी हूं कब से मैं
एक तरफ़ पत्थर की मूरत और एक तरफ़ है पत्थर दिल
कलयुग की अहिल्या बनी खामोश खड़ी हूं कब से मैं !!
४
अब नही झुकना है मुझे चाहें करो कितने भी सितम
अब मर-मर के ना जीना मुझको हुआ है मेरा पुनर्जन्म
अब नही मानुंगी मैं हार,नही हूं अब मैं तेरी अभाग्यता
अब कहोगे तुम ख़ुद मुझको अपराजिता अपराजिता !!
५.
संघर्ष से जो हो ना तंद्रा
जीत लहू की जो पीले मदिरा
विजय होने की हो जिसमे तम्यता
वो कहलायेगी अपराजिता,अपराजिता
अक्षय-मन
५.
संघर्ष से जो हो ना तंद्रा
जीत लहू की जो पीले मदिरा
विजय होने की हो जिसमे तम्यता
वो कहलायेगी अपराजिता,अपराजिता
अक्षय-मन
46 comments:
बहुत खूबसूरत.
" वाह क्या बात है । बहुत बढिया लिखा है । । "
बहुत खूब !
fine very fine .. but think it also...
मैं एक औरत हूँ
व्यक्ती नहीं
यहाँ मेरी कोई मर्जी नहीं
जिससे चाहू मिलू
ये हों नहीं सकता
अपनी मर्जी से
ना मैं माँ बन सकती हूँ
ना ग्रभपात करा सकती हूँ
बच्चो कों पिता का नाम दू
या ना दू
ऐसा हों ही नहीं सकता
क्यों की मुझे अधिकार ही नहीं
अपना जीवन जीने का
मैं भारतीय नारी हूँ
जहा
पशु और औरत की कोई
कोई मर्जी नहीं होती
मेरी मर्जी पिता ,बच्चो और
पती के हाथो में बंधी
एक लगाम है
मैं एक व्यक्ती नहीं एक औरत हूँ
पर मेरी चाह है
अब मैं एक औरत की तरह नहीं
एक व्यकी की तरह
जीना चाहती हूँ... .................
गुरु कवी हकीम हरीहरण हथौडा ....
bhai
gajab ki kavita hai
bahut hi acha likha hai
aakhri ke 2 band to bahut hi ache hain
weldone likhte raho aisi he
WAH, NAARI BHAVNAAON KO BAHUT KHUBSURATI SE AAPNE VYAKT KIYA HAI.. BADHAYI..!!
har pankti nari ke vividh rupon me samahit hai,vyatha,karuna,ooj....sabkuch hai,
ek utkrisht rachna
doosra antara mere dil ko gehraayi se chhoo gaya........
kya baat hai bandhu...
is baar to killing lines hai , is baar to bus cha gaye ho guru... bahut badiya.. mere paas shabad nahi hai , very good , keep it up.
regards
vijay
सुंदर मुक्तक मार्मिक भावः आपके खूबसूरत ब्लॉग पर सैर कर आनंद हुआ आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है निरंतरता बनाए रखे
मेरे ब्लॉग पर पधार कर व्यंग कविताओं का आनंद लें
मेरी नई रचना दिल की बीमारी पढने आप सादर आमंत्रित हैं
बहुत बढिया....
नारी के सभी मनोभावों का बड़ी खूबसूरती से शब्द चित्रण किया है आपने.....
नारी की व्यथा को समझना पुरुष वर्ग के लिए बहुत ही मुश्किल है....
पर आपने कितनी सुन्दरता से शब्दों में जान दाल दी......
"मान रखु मैं उनका भी जिनसे हुई अपमानित मैं"
सच ये नारी ही तो है जो सिर्फ माफ़ करना जानती है....
ये भूल कर की उसको हर हाल में अपमान सहना है.....
जीत कर भी हारू पल पल तुमसे हुई पराजित मैं.....
नारी की पराजय to निश्चित है.....
क्यूंकि इस संसार में पुरुष ही जीत का हकदार है.....
नारी रिश्तो में बटी हुई है......
हर रिश्ते का मान सम्मान रखना है उसे....
हर जनम में नारी की व्यथा यही रहेगी.....
अगर कुछ बदलेगा to vo सिर्फ उसके अपमानित होने का तरीका......
नारी की कमजोरी, उसकी व्यथा और उसके मर्म को समझना,
हर किसी के लिए संभव नहीं है......
पर आप उस तक पहुच गए है.......
Sabke saath shamil hun...alfaaz nahee mil rahe alag koyi...intnee khoobsoorat rachna hai".....tukdonme vibhajit huee"! Kaisa kadwa sach hai...
sabhi rachnaye behad achhee hain..."Tareef karte ruktee nahee qalam..."
"Kaun hai mera kiskee tukdonme huee vibhajit mai.."Ye sahee alfaaz the..mai itnee bhaw vibhor hueee padhke ki galat shabt likh gayee...ye to mukhdhat kane jaisee rachnayen hain aapkee!
sir what a creation.marvelous.......
satya ,ko paribhashit karna aur woh bhi itni achchi tara...
sach kaho yoh aaj tak aise band nahi pade the.......heads off to u
sir what a creation.marvelous.......
satya ,ko paribhashit karna aur woh bhi itni achchi tarah...
sach kaho toh aaj tak aise band nahi pade the.......heads off to u!!!
Wah..wa
बंधुवर
अच्छी रचना
नारी के करुण स्वरुप को अच्छी तरह से उभारा है अपने
sir jee
bahut achhee kalam chal rahee hai .
likhte rahen ,likhte rahen
" thanks for your preceious words on my blog...first time seen your blog and read this , i cant imagine the words you have written in this particular post,,,,, the way you have described a woman its mind blowig, fantastic...."
Regards
वाह ! बहुत सुंदर.नारी मनोभाव का सुंदर चित्रण किया है आपने.बहुत सुंदर कविता है.
bahut khubsurat rachana
अत्यधिक दर्दीली किंतु हकीकत बयान करती हुई रचना /काश कवियों की इच्छा पूरी हो और पुनर्जन्म हो अपराजिता कही जाने लगे /अब ये भार साहित्यकार के कन्धों पर है -बहुत देख चुके समाज सुधार के नाटक -हालत बद से बदतर होती ही जारही है =आपको ये रचना ब्लॉग पर ही नहीं सार्वजानिक भी करना है - हर पत्रिका और समाचार पत्र को भेजना
बहुत खूब !बहुत बढिया लिखा है ।
bahot khub likha hai,wese to sare muktak ek se badhke ek hai muje khas kar 2 aru 3 bahot pasand aaya, kya marmik bhav dala hai aapne bahot khub.. ek din muktak lekhan me aapka sarwoch sthan hoga,nari ke bare me itni behtarin rachana maine to kahin nahi padhi thi thode sabd me sab kuch likh dala bahot khub dhero badha apko.. dhero sadhuwad...
...प्रभावशाली अभिव्यक्ति ।
bahut khubsurti se bhavon ki abhivyakti...
Akshay...maine mere blogpe ek tippanee likhi hai...kya use tum apne blogpe, copy, paste karke laga sakte ho??Mere paas samay kam hai...mai Mumbai jaa rahee hun....
अद्भुत अक्षय जी । मुझे आश्चर्य हो रहा है जो हम नारिया जिंदगी के बहुत से मोड़ पर अक्सर महसूस करती है , उसे आपने बड़े सुंदर और भावपूर्ण तरीके से अभिव्यक्त कैसे कर पाए और वह भी एक पुरूष हो कर ? छोटी से उम्र में ही बड़े बड़े काम करने की प्रतिभा है आपमें , दिल से दुआ है किआप कीयह प्रतिभा और निखरे ।
- स्वाति
वाह ! अक्षय जी क्या रचना है / बीते कल के दौर में यह कहा जाता था कि - '' नारी तेरी यहीं कहानी , आँचल में है दूध आंखों में पानी '' परन्तु अब नारी का पुर्नजन्म हो चुका है अब कहा जाता है कि - '' नारी कल भी भारी थी , नारी आज भी भारी है , पुरूष कल भी आभारी था और पुरूष आज भी आभारी है '' / आज के युग में नारी किसी भी स्तर से पुरूष से कम नहीं है /
Pehli baar aapka blog dekha. Ek achche anubhav ke liye badhai.
Sabne itnaa likh diya mere likhne ke liye kuch bacha hi nahi ....bas itna hi kahungi ...hamesha khush rahiye aur isi tarah se apne man ke bhavo ko kalam se kagaj per utarte rahiye.... all the best.
Akshay...tumpe garv mehsoos karti hun.....tumne har maa ko , har bharteeyko gauravanvit kiya hai....Ye baat tumhen baar, baar kehneko man karta hai...
Maine apnehi blogpe ek tippanee dee hai..padhke uspe kuchh likhoge??Mukjhe yaqeen hai tum zaroor behtareen taurse likhoge...!
Dheron shubhkamnayen!!
hi akshay,
bahut khoob abhivyakti hai nari ke antarman ki.aisa laga jaise aapne wo sab jiya hai..........har ahsas se sarabor abhivyakti hai tumhari..........bahut bahut badhaayi
मुझे आपका ये ३."मेरी व्यथा भी सुन लो......." सबसे अच्छी लगी.
और हाँ फोटो सेलेक्शन बहुत खूब है.
Akshay Man kahta hain ki aapko bahut aagey jana chaiye....... God bless you
aap bahut sundar likhte hai aap mere blog pe nahi aate to main bahut achchhi rachanaa miss kar deti iskeliye dhanyawaad .naari jeevan ki vyathaa ko itni khoobsurati ke saat utara hai aapne ki main padhkar dhanya ho gayi .kya warnnan karoo .
बहुत सुंदर.नारी मनोभाव का सुंदर चित्रण
Naari maan ki sundar abhivayakti aap ko badhaii.
सुंदर विचार है लेकिन अफ़सोस की यह केवल विचार हीं है जो लेखनी के जरिए आपके ब्लाग में आ गए है क्यों कि पुरुष कितना सुंदर, स्वच्छंद लिख भी ले लेकिन एक नारी के विचारो कि गहराई को वह नहीं नाप सकता है बाकी आपने अच्छा लिखा है
naari ko ek naari hi theek se samajh sakti hain .....bahut sundar rachna
bahut hi aachi rachna haa.........
बहुत सुंदर रचना..
http://www.aakharkalash.blogspot.com
CONGRTES AKSHAY....
BAHUT SUNDAR ABHIVYAKTI......man anandit hua ye rachna padh kar....ek nari ke manobhavo ka sundar varnan....ishwar apko ashish den..."APARAJITA"
I am sure ,the day will come when women will become aparajita.
अपराजिता अपराजिता !! --- बस यही भाव नारी में हो...यही कामना है....अंत के दो पैराग्राफ सकारात्मक प्रभाव छोड़ते हैं...
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