Wednesday 27 September 2017

बदलाव

इस वक़्त ने बहुत बदल दिया है मुझे
या कहूँ इस समाज ने
क्या अंतर है।

मेरे इस संघर्ष को इस बदलाव को
तुम कैसे परिभाषित करोगे?

तुम मुझे कल भी अबला समझते थे
तुम मुझे आज भी लाचार समझते हो

अबला और लाचार तुम्हारी सोच है

औरत की सीमाओं को 
सीमित समझने वाला ये समाज 
समझ ले
मेरा उसी समाज,उसी सोच से संघर्ष है।

मैं बदल रही हूं
बदल जाऊंगी
मेरा बदलाव
आपकी सोच जितना सीमित नहीं।
मेरा बदलाव
आपकी सोच जितना सीमित नहीं।

~~अक्षय–मन

1 comment:

Navin Bhardwaj said...

बहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे
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