Wednesday, 27 September 2017

बदलाव

इस वक़्त ने बहुत बदल दिया है मुझे
या कहूँ इस समाज ने
क्या अंतर है।

मेरे इस संघर्ष को इस बदलाव को
तुम कैसे परिभाषित करोगे?

तुम मुझे कल भी अबला समझते थे
तुम मुझे आज भी लाचार समझते हो

अबला और लाचार तुम्हारी सोच है

औरत की सीमाओं को 
सीमित समझने वाला ये समाज 
समझ ले
मेरा उसी समाज,उसी सोच से संघर्ष है।

मैं बदल रही हूं
बदल जाऊंगी
मेरा बदलाव
आपकी सोच जितना सीमित नहीं।
मेरा बदलाव
आपकी सोच जितना सीमित नहीं।

~~अक्षय–मन

Saturday, 30 July 2016

अंतर्मन के भावों से

अंतर्मन के भावों से
ह्रदय-अमुक परिभाषित होगा
अग्न लगाते शब्दों का
अर्थ कोई अभिशापित होगा ।

जीवन-मृत्यु की पहेलियाँ
सुख-दुःख के भ्रम को सुलझाती है
काटों में जैसे अधखिली कलियाँ
खिल-खिलकर मुरझाती हैं ।

ह्रदय मेरा निस्पंद हुआ है
अटकी सांसें प्राणों में
क्या हैं वो सब सत्य गाथायें ?
जो लिखी गीता-पुराणों में ।

नीर तेरे गंगा-जमुना
जिसकी हर बूंद पावन है
प्यासा मन आज भीगा है
नयनो से बरसा सावन है ।

समय की रेत मुठ्ठी से निकले
जीवन तुम बढ़ जाने दो
दुःख के पल-चिह्न जो ठहरे है
अश्रुओं संग बह जाने दो ।
अक्षय-मन 

Saturday, 22 June 2013

तवायफ

पाँव में बेड़ियाँ जब छनकती  हैं
तो बेकल हो नाच 
उठते हैं मेरे सभी गम
मजबूरियों की ताल पर
हालातों के राग पर
मैं नाचती जाती हूँ
मैं नाचती जाती हूँ
मैं बाहर से कुछ और
अन्दर से कुछ और
दिखाई जाती हूँ
तमाशबीन इस दुनिया में
मैं ऐसे ही पेश की जाती हूँ
जहाँ मेरे दर्द-ओ -जिस्म
के हर रात  सौदे होते हैं
एक दुल्हन की तरहां मैं
हर रात सजाई जाती हूँ
मैं एक माँ,एक बहिन,
एक बेटी,एक बीवी और 
एक औरत बाद में
तवायफ पहले
कहलाई जाती हूँ 
 मैं औरत बाद में
तवायफ पहले
कहलाई जाती हूँ !!!!!!

~~अक्षय-मन 
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